नवंबर 2007                           
कहीं मैंने पढा था कि,मेहनत का कोई पैमाना नहीं होता है इसे केवल अनुभव किया जा सकता है,और आकलन के परिणाम तो अनुकूल ही होंगे । इसका प्रत्यक्ष अनुभव मैंने दिल्ली मे किया था । शासन की सेवा के अनगिनत कार्यों के समय व निजी कार्यो के लिए भी बहुधा किराए का वाहन मै लिया करता था। वाहन चालक जो होता है वह सवारी का राजदार होता है फलस्वरूप मै एक विशेष वाहन चालक के वाहन को ही किराए पर लेने का प्रयास किया करता था। धीरे धीरे उससे व्यक्तिगत वार्ता भी होने लगी बात-बात मे विदित हुआ कि करमू नाम का बंदा पलामू जिला,बिहार प्रदेश का निवासी है और यहा दिल्ली मे जीवन-व्यापन हेतु टैक्सी चलाता है उसे मै जब कहूँ वह आ जाता था अल सुबह,देर रात दोपहर,कभी भी और वह भी एकदम टाइम से।
एक बार आगरा जाना था प्रातः 4 बजे उसे आने को कहा और पूछा आ जाओगे न!! उसने जवाब दिया एकदम सर ....और सुबह तीन बज के पैंतालीस मिनट परमोबाइल पर घंटी बजी उधर से आवाज आई ...सर मै आ गया हूँ नीचे खड़ा हूँ मै भी लगभग तैयार ही था चार बजे ठीक बिल्डिंग से नीचे उतरा वाचमैन ने कहा सर आपकी गाड़ी खड़ी है अंदर लगवाऊँ क्या ? मैंने सकारात्मक उत्तर के साथ पूछा क्या गाड़ी वाला 3.30 बजे ही आ गया था क्या ! उसने उत्तर दिया नो सर गाड़ी तो रात 11.00 बजे से ही आ कर खड़ी है मुझे कुछ आश्चर्य हुआ खैर गाड़ी मे बैठा इधर उधर की बातें की और करमू से पूछा क्या रात को घर नहीं गए क्या .... उत्तर देने मे करमू ने समय लगाया और धीरे से कहा सर मेरी गाड़ी ही मेरा घर है पर मै कुछ समझ नहीं सका। 
                                            आगरा पहुँच कम काज समाप्त कर लौटते  लौटते रात के साढ़े बारह बज गये दिल्ली पहुँच कर पूछा रात यही रुक जाओ सुबह जाना हाँ की मुद्रा मे सिर हिलाते हुये उसने कहा मै गाड़ी मे ही सो जाऊंगा सुबह आता हूँ। प्रातःनित्यकर्म के पश्चात फोन किया करमू तुरंत ही फ्लॅट पर आ गया देखा एकदम तैयार बिना पूछे ही उत्तर दिया ...सर बगल मे जन सुविधा थी मै तैयार हो गया.... मैंने पूछा तुम्हारे घर वाले इंतजार मे होंगे ? उत्तर मे उसने मुझे गहरी आंखो से देखते हुए विनम्रता पूर्वक पूछा सर क्या मै आपके लिए चाय बना सकता हूँ ? 
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आंखो से इशारा मिलते ही झटपट चाय बना लाया और कालीन पर बैठ गया मेरे  चाय पीते पीते उसने बतया की वो अपने राज्य से कुछ काम की तलाश मे दिल्ली आया ड्राईवरी आती ही थी टैक्सी चलाने लगा और पढ़ा लिखा था ही जैसे तैसे कर के टैक्सी खरीदी और लगा चलाने पूरी मेहनत के साथ ।
                                 उसकी पूरी  कहानी कुछ ऐसी है कि वह , विवाहित एक बच्चे का पिता,परिवार मे बूढ़े माता पिता व एक छोटा भाई ...जो की पढ़ने लिखने मे कुशाग्र.. पर गाँव मे इतनी आमदनी नहीं की घर का खर्च डेढ़ बीघे जमीन की उपज से चल सके ...सो पूरे परिवार ने निर्णय लिया की आधा बीघा जमीन के टुकड़े को बेच कर दिल्ली जाऊँ कुछ कम धंधा शुरू कर छोटू को भी अच्छे से पढ़ाऊ ...दिल्ली आ गया एक नेक व्यक्ति की सलाह से पुरानी गाड़ी के बदले नई गाड़ी खरीदी व पिछले लगभग ढाई  वर्षो से टॅक्सी चला रहा है  ...आप जैसे अच्छे लोग मिल जाते है और बुकिंग मिलती रही ....और घर भी चलता रहा आमदनी इतनी नहीं की पत्नी और परिवार को ला नहीं  सकता सो पैसे बचाने के लिए किराए का घर  के बजाय गाड़ी मे रहना शुरू ... दिल्ली मे किसी ठीक जगह पर कर पार्क कर गाड़ी मे ही सोता व जनसुविधा मे नित्य कर्म पूरा करता ,कभी गुरुद्वारे कभी मंदिर मे खाना खा लेता...और जब कभी कही कुछ नहीं मिलता स्टोव गाड़ी मे ही रखता हूँ  कही सुनसान जगह पर रुक दो तीन रोटी  बनाता उसे आचार या नमक के साथ खा लेता था ...और बुकिंग मे आप जैसे लोग तो खाना खिला ही देते है  इन सब से   पैसे बचे ... टॅक्सी की किश्त भी चुकाता गया घर भी ठीक ठाक पैसे भेजने लगा ....... और सर आज टॅक्सी का लोन लगभग समाप्ती पर है और  अगले महीने ये कार अब मेरी हो जाएगी ।
उसकी बाते सुन कर किंकर्तव्यमूढ़ हो गया ।कड़ी मेहनत की घोर तपस्या व सफलता के लिए अनवरत लगन का जीता जागता प्रमाण मेरे समक्ष उपस्थित था ।
फरवरी 2015  
                            अपने स्थानांतरण व आजीविका का अनुसरण करते करते मै अत्यधिक व्यस्त हो चुका था एक दिन घर पर बैठा कुछ कार्य कर रहा था फोन की घंटी बजी नंबर परिचित नहीं था फोन उठा कर हेलो कहा की एक चिरपरिचित आवाज कर्ण गोचर हुई “प्रणाम सर” सेकेंड के दसवें हिस्से मे  ही मै समझ गया यह दिल्ली वाला करमु है ...औपचारिक वार्ता के साथ उसने बताया की उसने दो गाडियाँ और  खरीद ली है डीडीए के फ्लॅट का नंबर 2009 मे लग गया तो एक छोटा सा फ्लेट भी खरीद लिया है और सबसे अच्छी बात जो उसने बताई की उसका भाई छोटू एम.बी.बी.एस. कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से एम.डी. कर रहा है.......
राजेंद्र सिंह
    

