आज देश में चारों तरफ आर्थिक मंदी की चर्चा है और देश चलाने वाले वे सभी इकाईयां आज मंदी के दौर से गुजर रहीं हैं । क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है और उत्पाद है तो खरीदार नहीं है। वे सेक्टर्स हैं Auto,रियल स्टेट, टेलकाॅम, बैंकिंग तथा स्टील और टेक्सटाईल जैसे सेक्टर मंदी की मार झेल रहें है। कुछ लोगों की राय में इसकी जिम्मेदार मौजूदा सरकार है। मगर सच्चाई ये है सरकारें कोई भी हो मंदी तो आती हैं और आती रहेंगी। अर्थशास्त्र के जानकारों के मुताबिक मंदी का दौर 15-20 सालों में अवश्य आता है जिसमें पूरा विश्व चपेटे में आता है।  इसे ही समझते हैं  
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चर्चा करते है मंदी क्या है?
दरअसल जब किसी भी प्रकार के उत्पान और खरीदी में गिरावट दर्ज हो  और यह सिलसिला तीन महिने से अधिक चल तो इसे आर्थिक मंदी कहते हैं । 
तो ये होता क्यों है ?
आईए समझते है एक छोटी सी गणित से -दरअसल हर 15-20 वर्षो में हर सेक्टर जैसे Automobile, टैक्सटाईल रियल स्टेट, टैलकाॅम  इत्यादि बेहिसाब लोन लेकर उत्पादन करता हैतो खरीदार भी ऐसा ही करता है फिर नजर आतो है बूम । जब यह एक सीमा तक पहूॅच जाता है तो फिर उत्पान भी बंद करना पड़ता है क्योंकि पुराना लोन नहीं पटाया गया है ठीक उसी तरह खरीदारी भी वैसे ही होती है। क्योंकि तमाम योजनाओं और छूट का फायदा लेने के चक्कर में खरीदार समान तो खरीद लेता है मगर उसका भुगतान चूंकि वह लोन मेें होता है तो लोन चक्र  पूरा होने के बाद ही सम्भव होता है।  लिहाजा खरीदारी बंद उत्पादन बंद तो जाहिर है मंदी तो आएगी ही। ये चक्र होने में हर देष को 15-20 साल लगते है। देश जितना बड़ा होगा मंदी को दौर भी वैसा ही भयावह होगा।  ऐसे में हर नागरिक को चाहिए कि निवेश पर ज्यादा ध्यान दे तो मंदी का भूत भाग जाएगा क्योंकि देश चलाने के लिए पैसा तो चाहिए न 
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| Combat with Recession | 
वर्तमान में क्या हुआ है?
जानकारों के मुताबिक दुनिया के बाजार पर नजर डालते हैं तो समझ में ये आता है कि ये मंदी आई क्यों।
इसकी पहली वजह वे ये बताते हैं कि अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गई  है, जिससे मंहगाई दर बढ़ गई। साफ शब्दों में कहें तो विश्व बाजार से तेल हम अब पहले से ज्यादा मंहगे में खरीद रहें है। जाहिर है उसका पैसा जनता से वसूला जा रहा है।
दूसरी वजह है डाॅलर के मुकबले रूपये की घटती कीमतें है । आज 1 डाॅलर का मतलब 72 रूपये हो गया है। 
तीसरी वजह निर्यात कम हो गया है। यानि भारतीय वस्तुएं अब बाहर उतनी नहीं जा रहीं है जितनी हम पहले किया करते थे यानि कमाई का जरिया कम हो गया है। ऐसा उत्पादन कम होने से हुआ है।  
राजकोष में गिरावट आया, foreign currency में कमी आई है । इसका सीधा असर देश में कीमतों पर पड़ रहा है। 
इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक झगड़े के कारण भी मंहगाई बढ़ी है। ये भारत ही नहीं Whole World में यही तस्वीर है। 
भारत के परिपेक्ष क्या हो रहा है?
यहां मांग और पूर्ति यानि डिमांड और सप्लाई के बीच  अंतर में लगातार कमी आई है। तथा लोगों तथा कम्पनियों के निवेष में मामूली गिरावट आई है। 
तो इसका असर साफ दिख रहा है
- देश का Auto Sector में 19 साल की सबसे बड़ी गिरावट आई । बिक्री में लगातार 9 महिने से गिरावट दर्ज की गई है यानि गाड़िया बिकनी बंदी हो गई है जाहिर खरीदारी नहीं होगी तो कमाई कहां से होगी। कार और मोटर साईकिल में 30 प्रतिषत की गिरावट आई और इससे जुड़े 10 लाख नौकरियों के अवसर ही बंद हो गए। और तो और साढ़े तीन लाख की नौकरियां पहले ही जा चुकी हैं।
 - वही हाल कपड़ा उद्योग का भी है इसमें 34.6 प्रतिषत की गिरावट आई है । कपड़ा उद्याग जो कभी 10 लाख लोगों को प्रतिवर्ष रोज़गार देता था। आज 25 लाख नौकरियों को खत्म करना इसकी मजबूरी है।
 - यही हाॅल है रियल स्टेट सेक्टर का है भारत के 30 बड़े शहरों में 12.8 लाख मकान तैयार है। जो अपने खरीदार का इंतेजार कर रहें हैं।
 - बैंको ने भी उद्योगों के लिए कर्ज देना बंद कर दिया है।
 - सोने-चांदी की आयात में गिरावट आई है।
 
ये सब इशारा करते है कि India मंदी के दौर से गुजर रहा है। 
यही हाल state सरकारों का भी है जहां कांग्रेस की सरकारें है। हम बात कर रहें हैं छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेष की जहां अर्थ व्यवस्था का बट्ठा बैठा हुआ है। और सरकारें कर्ज में डूबी हुई । अनाप-शनाप घोषणाएं और बेहिसाब खर्चो ने states को कर्ज में डूबो दिया है। 
खैर Whole country की बात करें तो सकल विकास 5 प्रतिषत हो चुका है जो छः सालों में सबसे कम है। और संसेक्स 37000 के आंकडे पर आकर अटक गया है। 
राजीव कुमार जो नीतिआयोग के उपाध्यक्ष हैं कहते है पिछले 70 सालों में ऐसी स्थिति देष में कभी नहीं आई । 
शायद वे भूल गए देष में एक दौर ऐसा भी आया था जब केवल देष चलाने के लिए 7 दिन का तेल ही बचा था।जब मनमोहन सिंह ने देष की बागडोर सम्भाली थी।
ये मंदी कब तक चलेगी ये पूरी तरफ अर्थिक नीति पर निर्भर है । कुल मिलाकर बैंको पर भरोसा और निवेश ही इस मंदी से छुटकारा दिला सकते है।
मंदी से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?
- घरेलू उद्योगों का बढ़ावा देकर
 - निजी निवेश करके और
 - लोन पटाकर
 
जानकारों के मुताबिक प्रापर्टी में निवेश करने से बचे।  
History of Recession:-
History of Recession:-
विश्व की सबसे बड़ी मंदी 1929 से शरू हुई और 1939-40 तक चली। इसे विष्व इतिहास में "Great Depression"  के नाम से जाना जाता है जिसके कारण फासीवाद और Second World War  हुआ। 
बैंकों ने कर्ज देना बंद कर दिया , उस समय लोगों का भरोसा बैकों से उठ गया । लिहाजा वे अपने पैसे बैंक से निकालने लगे । तथा बैंक दिवालिया हो गये ।  

